Thursday, April 22, 2010

नाकारा राज्य संस्था ही नक्सल आंदोलन के बढ़ाव के लिए जिम्मेदारः गोविंदाचार्य

राष्ट्रवादी मोर्चा के संरक्षक  श्री के.एन. गोविंदाचार्य ने कहा, ‘नक्सलवाद स्वंय में कारण नहीं बल्कि संवेदनहीन नाकारा सरकारों की प्रतिक्रिया भर है। यह कोई आतंकवाद नहीं है। हमें यह समझना होगा कि नक्सलवाद को प्राथमिक स्तर पर स्थानीय समर्थन प्राप्त है। ऊपर से विदेशी मदद उन्हें और भी घातक बना रहा है। यह कोई विदेशी हमला नहीं है, बल्कि घरेलू राष्ट्रीय समस्या है।’

राष्ट्रीय राजधानी में एक पत्रकार वार्ता में गोविंदाचार्य ने कहा, ‘दंतेवाड़ा की घटना के लिए छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री समेत देश के गृहमंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद ही कसूरवार है। इस घटना के कुछेक दिनों बाद कांग्रेस पार्टी के महासचिव और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्री दिग्विजय सिंह के गृहमंत्री श्री पी चिदंबरम के बारे में व्यक्त अभिमत से मैं सहमत हंू। वह यह कि श्री चिदंबरम का अड़ियल सर्वज्ञ स्वभाव भी नक्सली समस्या के समाधान में बहुत बड़ी बाधा है। पार्टी अनुशासन से बंधे दिग्विजय सिंह इतने भर से बहुत कुछ बयान कर गए हैं। यह जरूरी है कि उनके बयान को दलगत राजनीति से परे होकर नक्सली समस्या के संदर्भ में देखा जाए।’

उन्होंने कहा, ‘जहां एक तरफ दंतेवाड़ा जैसी घटना को अंजाम देने वाले नक्सलवादियों को यह समझ लेना चाहिए कि भारत जैसे देश में वे अपने उद्देश्यों को हिंसा की राह पर चलकर कभी प्राप्त नहीं कर सकेंगे। वहीं दूसरी तरफ भारत सरकार व अन्य राज्य सरकारों को यह गांठ बांधने की जरूरत है कि वे नक्सलवाद को महज कानून व्यवस्था की समस्या मानकर सरकारी हिंसा के बल पर उन्हें काबू में नहीं कर सकेंगे।’

उन्होंने नक्सलवाद के विस्तार के लिए राजनीतिक व्यवस्था को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, ‘देश के पिछड़े इलाकों में नक्सलवाद का फैलाव इस बात का प्रमाण है कि राजसत्ता अपने उद्देश्य में विफल रही है। राजसत्ता का यह परम कर्तव्य है कि वह समाज के उन वर्गों का बचाव करे जो स्वयं अपना बचाव नहीं कर सकते हैं। देश की संवैधानिक व्यवस्था सामान्य आदमी के काम नहीं आ रही है। इस सामाजिक-आर्थिक यथार्थ से नक्सलवाद को ताकत मिल रही है।’

गोविंदाचार्य ने कहा, ‘सैकड़ों वर्षों से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहने वाले वंचित गरीब आदिवासी अपनी ही जमीन व जंगल से खदेड़े जा रहे हैं। सेठों, बिचौलियों, खदान मालिकों और देशी-विदेशी उद्योग घरानों के पक्ष में केंद्र सरकार व प्रदेशों की सरकारें कार्य कर रही हैं। संवैधानिक रास्तों से भी गरीब वंचित लोगों की सुनवाई नहीं हो रही है। भारतपरस्त और गरीबपरस्त राजनैतिक ताकत के उभार के अभाव में वर्तमान सामाजिक, आर्थिक स्थितियों का लाभ अराजक तत्व ही उठा रहे हैं। आम आदमी दुत्कार भर झेल रहा है। इससे नक्सलवाद लगातार मजबूत हो रहा है।’

उन्होंने कहा, ‘विगत 40 वर्षों में नक्सलवादियों ने राजसत्ता के चरित्र और दलीय राजनीति की विसंगतियों का अपने फैलाव के लिए भरपूर इस्तेमाल किया है। यह महज संयोग नहीं है कि आंध्र प्रदेश में नक्सली कमांडरों के पकड़े जाने की स्थिति में तत्कालीन मुख्यमंत्री ने सुरक्षित निकासी की व्यवस्था की थी। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सत्तारुढ़ दलों के उम्मीदवारों की चुनावी जीत राजनैतिक दलों की नक्सलवादियों से सांठगांठ का नतीजा है।’

इस समस्या की समाधान की राह बताते हुए उन्होंने कहा, ‘जमीन अधिग्रहण, खाद्य सुरक्षा कानून गरीबोन्मुखी बने। बेदखली, विस्थापन, पलायन को मुख्य समस्या मानकर समाधान की नीतियां तैयार हों। जीडीपी की दर पर जोर न देकर अंत्योदय, जन सहभागिता, सत्ता के विकेंद्रीकरण पर जोर दिया जाए। भूख और बेरोजगारी को नीतियों की धूरी बनाई जाए। खदान, उद्योग, सेज आदि की अनुमति देते समय जन मिल्कियत को आधारभूत तत्व बनाया जाए। शासन-प्रशासन जनता के मन में विश्वसनीयता अर्जित कर पाए, इस बाबत अनुभवी लोगों से परामर्श कर योजना बनाई जाए। 
 
राष्ट्रवादी मोर्चा संवेदनशील परिणामकारी शासन एवं प्रशासन हेतु पहल करेगा साथ ही देश में वातावरण भी बनाएगा।’
 

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